Monday, September 19, 2011

कुछ नहीं

क्या करना है  क्या होना है 
किसको क्या पता है यहाँ 
अपनी तो  जिन्दगी जा रही है 
ये राहे ले जाए जहाँ ....

हिस्से हिस्से में बँट  रहे ख्वाबो को 
जोड़कर इक तस्वीर बनाता हूँ  
फिर टुकड़े टुकड़े कर उसके 
यूँ ही मुस्कुराता हूँ  

शायद ख्वाबो का यही होना है
हर पल बस नए सपने संजोना है
हर कोई यहाँ खिलौना है 
न कुछ पाना है ना कुछ खोना है 


गर मजा आता है छोड़ कर जाने में तुम्हें
मेरी यादों को तनहा छोड़ जाओ तुम

Sunday, September 4, 2011

लम्हे

ठहरी हुई जिन्दगी में
लम्हे यूं गुजर जाते हैं  
हाथों से रेत  की तरह
फिसल जाते हैं
रोकना तो चाहा बहुत मगर
 ये तो बादल हैं
बस उड़ते ही चले जाते हैं

लम्हों को खुल के जीना
हमने सीखा ही नहीं
जिन्दगी की राह पर  
सर को झुकाए चले जाते हैं

  बेहिसाब लम्हे यूँ ही
गुजरते गए 
सिवाय उस लम्हे के
जिसमे हम तुम साथ थे 
और वो याद बन गया.....