Sunday, September 4, 2011

लम्हे

ठहरी हुई जिन्दगी में
लम्हे यूं गुजर जाते हैं  
हाथों से रेत  की तरह
फिसल जाते हैं
रोकना तो चाहा बहुत मगर
 ये तो बादल हैं
बस उड़ते ही चले जाते हैं

लम्हों को खुल के जीना
हमने सीखा ही नहीं
जिन्दगी की राह पर  
सर को झुकाए चले जाते हैं

  बेहिसाब लम्हे यूँ ही
गुजरते गए 
सिवाय उस लम्हे के
जिसमे हम तुम साथ थे 
और वो याद बन गया..... 

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