Sunday, November 4, 2012

स्वप्न मुझको बोने दो

अभी सपने में हूँ मुझे सोने दो 
अधूरे से मेरे सपने को पूरा होने दो 
जागूँगा फिर मैं इक नए स्वप्न में 
अभी स्वप्न मुझको बोने दो !!

स्वप्न और हकीकत

सपनों से भरी सपनीली दुनिया में
सपने ही मैं देखा करता हूँ ,
सपनों में यूँ गुम हो जाता हूँ
खुद से ही बातें करता हूँ

बिखरे -बिखरे  भूले -बिसरे
ख्वाबों को यूं मैं बिनता हूँ
इन ख्वाबों  के किसी एक कोने में
हाँ इस पल मैं जिंदा हूँ

जोड़ सके जो सपनो को हकीकत से
ऐसी कोई डोर है क्या ,
ख्वाबों की अछोह गहरायी में
हकीकत  के धागे खोजा करता हूँ


सपनों से भरी सपनीली दुनिया में
सपने ही मैं देखा करता हूँ ,
सपनों में यूँ गुम हो जाता हूँ
खुद से ही बातें करता हूँ


इन अधपके अधूरे  ख्वाबों को
अपनी असलियत कैसे बनाऊं
थोडा और जगना है इस स्वप्न में
तो आओ फिर सो जाऊं
तो आओ फिर सो जाऊं .....

Tuesday, October 2, 2012

युवाओं के नाम

सो रहे हो नींद  में तो जाग  जाओ 
देश की खातिर कुछ तो काम  आओ 

कुछ सोंचो की समाज के जो सवाल हैं 
की तू ही तो उन सवालों का जवाब है 

कुछ करो की जरुरत है तुम्हारी 
देश भी  तुम्हारा , देश की मुश्किलें  भी तुम्हारी 

मैं ये नहीं कहता की तू   सेना का जवान  बने 
गांधी- नेहरु या नेता महान बने 

पर समझ की तेरी भी कुछ जिम्मेदारियां हैं 
देश हित में तेरी भी हिस्सेदारियाँ  हैं 
देश हित में तेरी भी हिस्सेदारियाँ  हैं 

तो उठो जागो और कर्म  करो 
उठो जागो और कर्म  करो  !
 



  

Friday, September 7, 2012

गुनहगार

मेरी ख़ामोशी को मेरा गुनाह मान लिया 
मैंने भी चुपचाप सजा का फरमान मान लिया 
क्यूँ सह गया ये ज़ुल्म मैं खुद नहीं जानता 
तुने कहा और मैंने खुद को गुनहगार मान लिया 

Monday, September 3, 2012

भावनाएं

आसमां के बादलों सी ही
भावनाएं मेरी बहुतेरी
घेर लेती हैं कभी मन को
तो कभी छोड़ देती हैं खुला - खुला

कभी  कुछ कपास से रेशमी भाव
चमक से भर देते हैं हर कोना
तो कभी बादल ढक  लेते हैं
बूँदें बरसती हैं मुझको रुला - रुला

बिजलियाँ कड़क कर सहमा देती हैं
आंधियां भी आके भरमा देती हैं
पर जब ख़त्म होता है सब तब
अम्बर - धरती जैसे  धुला - धुला

 आसमां के बादलों सी ही
भावनाएं मेरी बहुतेरी
घेर लेती हैं कभी मन को
तो कभी छोड़ देती हैं खुला - खुला 
लफ़्ज़ों में जो कही बात
वो मेरे दिल से न आएगी
और जो मेरे दिल में है
वो कही ना जायेगी 

मेरी यादों में कहीं

जितनी ज्यादा कोशिश करता हूँ 

तुझे भूल जाने की 

गुंजाईश बढती जाती है 

तेरे याद आने की 

गर मैं नहीं जोर देता हूँ 

जेहन को ढीला छोड़ देता हूँ 

फिर भी तू रहती है वहीँ 

मेरी यादों  में कहीं ...........

Sunday, July 29, 2012

अधूरा

 जब से  तुम गए हो सब कुछ अधूरा  है,
 गीत अधूरे  हैं , किस्से अधूरे हैं 

सुना है किस्सों को अधूरा  छोड़ना अच्छा  नही  होता 
पर अकेले कलम  मेरा  साथ भी तो नहीं देती, 

कभी  आओ  तो  आगे  कुछ लिखे 
कोई  अन्त  दे इस  कहानी  को ,

अधूरे  शब्द , बेमतलब वाक्य  कागज पर बिखरे  हैं 
आओ तो समेट कर  कोई अर्थ  गढ़े ,

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Sunday, May 13, 2012

तू गुजरा हुआ एक लम्हा, मैं आने वाला पल

तू गुजरा हुआ  एक  लम्हा
मैं आने  वाला  पल ,
तू भी एक  कल
मैं भी एक  कल

बस  तुम  यादों  के सांचे में ढल  गए
वक्त  के दरिया में  गिरकर  जल गए
पर मैं हूँ  अब भी इक  कल्पना
अनछुआ  , निष्कलंक  ....... निर्मल


तू गुजरा हुआ  एक  लम्हा
मैं आने  वाला  पल ,

तुने बांटी जो  खुशियाँ
वो जश्न  मुझे  मनाने  हैं
तुने जो दर्द  दिए
वो आंसू मुझे बहाने हैं
तुझसे ही मैं खुश
तुझसे ही बेकल ,

तू गुजरा हुआ  इक   लम्हा
 मैं आने  वाला  पल ,

तुझसा मैं भी जल   जाऊंगा
यादों के सांचे में ढल  जाऊंगा
तू और मैं जब  मिल  जाते हैं
वक़्त  की श्रृंखला बनाते  हैं
और यूं ही बहता  जीवन  अविरल


तू गुजरा हुआ  इक   लम्हा
 मैं आने  वाला  पल ,

मंजिल

मैंने चाहा वो मुकाम  आ  भी  गया  तो क्या ,
राही ने मंजिल  को पा भी लिया तो क्या ,
ज़िन्दगी तो राहों  में  हुआ   करती  है ,
मंजिल तो बस  मौत  है  और  क्या ....

Monday, May 7, 2012

जाने मैं चला किधर

कुछ  ख्वाब  देखे थे मैंने 
कुछ  सपने  संजोये थे 
उन सपनों में ही हँसते  थे 
उन में ही हम  रोये थे 
छोड़ ख्वाबों को तकिये पर 
आज जाने मैं चला किधर 

सोंच  रखा था  ज़िन्दगी को 
कुछ  इस  तरह  सजाना  है 
रात  में  भी दिन  हो जहाँ 
वहीँ बस  अपना  आशियाना  है 
उन उजालों से बचा नजर 
आज जाने मैं चला किधर

बाँध रखा  था खुद को 
ख्वाबों के कंटीले  तारों से 
चाहता था ज़माने  से अलग 
अलग  दिखूं हजारों से 
अब  बेफिक्र  हूँ फिक्र  छोड़कर 
 जाने मैं चला किधर

राह  और  मंजिल  से बेखबर 
आज जाने मैं चला किधर

Monday, April 23, 2012

मुखौटा

यूँ चेहरे पे चेहरा लगाया है 
की खुद को सभी से छुपाया है 
जमाना कुचल देता एक मासूम को 
मुखौटे ने ही इसको बचाया है !!!.......

Friday, March 2, 2012

हर घड़ी ! हर लम्हा !

तुम्हारे साथ बिताये थे जो पल
यूँ तो बीत गए
पर गुजरते गुजरते  कहीं
मुझे अन्दर तक रीत गए

जाना तुम्हारा छोड़कर ऐसे
जबकि तुम्हारे बिन मैं रहा नहीं
ये एक नया दौर है वक्त का
तो चलो यूँ ही सही    

सोचकर तुम जो चले जाओगे
लगा की आँखे भर आएँगी
जीता था साथ तुम्हारे
तुम बिन धड़कने थम जाएँगी

पर जब तुम यहाँ नहीं हो
जाने क्यों कमी ये नहीं खलती
वक़्त थमा कुछ देर तक पर
जिन्दगी वैसे ही चल दी

शायद अपना रिश्ता ही ऐसा है
की अब मैं नहीं हूँ तनहा
दूर हो तुम पर पास हो मेरे
हर घड़ी ! हर लम्हा !
 

बिन कहे

लफ्ज़ नाकाफी हैं कहने को
न मैं कुछ कहता हूँ
न तुम कुछ कहते हो
फिर भी क्या बात है देखो
तुम भी समझ गए
हम भी समझ गए  

Sunday, January 8, 2012

धारणा

मैं न ही  जानता हूँ
न ही पहचानता हूँ
पर मैंने ये जाने क्यों मान लिया
तुम वो ही हो जो मैं सोचता  हूँ

तुम को जाने बिना
एक ख्याल गढ़ लिया
और मानता हूँ  की
तुम वैसे हो जैसा मैं समझता हूँ

कितना गलत था मेरा ये सोचना
यूँ आवरण को देख भीतर को परखना
फिर बेवजह की एक धारणा बनाना
तुम वही हो जो मैं सोचता हूँ