Friday, March 2, 2012

हर घड़ी ! हर लम्हा !

तुम्हारे साथ बिताये थे जो पल
यूँ तो बीत गए
पर गुजरते गुजरते  कहीं
मुझे अन्दर तक रीत गए

जाना तुम्हारा छोड़कर ऐसे
जबकि तुम्हारे बिन मैं रहा नहीं
ये एक नया दौर है वक्त का
तो चलो यूँ ही सही    

सोचकर तुम जो चले जाओगे
लगा की आँखे भर आएँगी
जीता था साथ तुम्हारे
तुम बिन धड़कने थम जाएँगी

पर जब तुम यहाँ नहीं हो
जाने क्यों कमी ये नहीं खलती
वक़्त थमा कुछ देर तक पर
जिन्दगी वैसे ही चल दी

शायद अपना रिश्ता ही ऐसा है
की अब मैं नहीं हूँ तनहा
दूर हो तुम पर पास हो मेरे
हर घड़ी ! हर लम्हा !
 

बिन कहे

लफ्ज़ नाकाफी हैं कहने को
न मैं कुछ कहता हूँ
न तुम कुछ कहते हो
फिर भी क्या बात है देखो
तुम भी समझ गए
हम भी समझ गए