मेरी ख़ामोशी को मेरा गुनाह मान लिया
मैंने भी चुपचाप सजा का फरमान मान लिया
क्यूँ सह गया ये ज़ुल्म मैं खुद नहीं जानता
तुने कहा और मैंने खुद को गुनहगार मान लिया
भटक जाता हूँ हर मोड़ पर, अजनबी सी हैं ये गलियाँ l इक तो लीक नयी मेरी, उसपर अन्जान शहर तेरा l