Friday, September 7, 2012

गुनहगार

मेरी ख़ामोशी को मेरा गुनाह मान लिया 
मैंने भी चुपचाप सजा का फरमान मान लिया 
क्यूँ सह गया ये ज़ुल्म मैं खुद नहीं जानता 
तुने कहा और मैंने खुद को गुनहगार मान लिया 

Monday, September 3, 2012

भावनाएं

आसमां के बादलों सी ही
भावनाएं मेरी बहुतेरी
घेर लेती हैं कभी मन को
तो कभी छोड़ देती हैं खुला - खुला

कभी  कुछ कपास से रेशमी भाव
चमक से भर देते हैं हर कोना
तो कभी बादल ढक  लेते हैं
बूँदें बरसती हैं मुझको रुला - रुला

बिजलियाँ कड़क कर सहमा देती हैं
आंधियां भी आके भरमा देती हैं
पर जब ख़त्म होता है सब तब
अम्बर - धरती जैसे  धुला - धुला

 आसमां के बादलों सी ही
भावनाएं मेरी बहुतेरी
घेर लेती हैं कभी मन को
तो कभी छोड़ देती हैं खुला - खुला 
लफ़्ज़ों में जो कही बात
वो मेरे दिल से न आएगी
और जो मेरे दिल में है
वो कही ना जायेगी 

मेरी यादों में कहीं

जितनी ज्यादा कोशिश करता हूँ 

तुझे भूल जाने की 

गुंजाईश बढती जाती है 

तेरे याद आने की 

गर मैं नहीं जोर देता हूँ 

जेहन को ढीला छोड़ देता हूँ 

फिर भी तू रहती है वहीँ 

मेरी यादों  में कहीं ...........