Wednesday, July 31, 2013

मायने

जब तक मेरे जेहन   रहा
तू ज़ज्बात बन कर रहा
जुबां तक पहुँचते पहुँचते
 लफ्ज़ बन गया
होठों के रास्ते निकला जो
अल्फाज़ बन हवा में उड़ता फिर रहा
तेरे कानों तक पंहुचा तो
एक आवाज़ हो गया
रिस रिस कर ये जो
तेरे दिल-ओ-दिमाग में भर रहा
तो एक ख्याल हो गया
पर,……
वहां मायने  बदल गए
वहां मतलब बदल गए
तूने शक्ल इक नयी इख्तियार की
कही वो जो मैंने कही ना बात थी
और अब हर इक बात का
सबब तू बन रहा
पर तू तो बस एक ज़ज्बात था
मासूम, निरपराध सा
अब न जाने तू
क्या से क्या बन रहा …

मुकम्मल की तलाश थी
हाथ कुछ भी न आया है
आफताब  की आरज़ू  में
चिराग भी गवाया है 

अख़बार की खबर

मैं हर रोज पैदा होता हूँ
मैं हर रोज मारा जाता हूँ
कभी सीने से लगाया जाता हूँ
कभी टुकड़े टुकड़े फाड़ा जाता हूँ
कुछ कुछ मैं बनता जाता हूँ
कुछ कुछ मैं मिटता जाता हूँ
सुबह को धूप  हूँ तो
रात को अँधेरा बन जाता हूँ
छोटी सी ज़िन्दगी मेरी
छोटा सा मेरा सफ़र
मानो मैं हूँ कोई. …… अख़बार की खबर !