Tuesday, December 9, 2014

अनकही बातें

कभी जब देखना उन आँखों से
आँखों में मेरी ,
कह देना वो, जिसे कहने में
लफ़्जों की गणित चूक जाती है

तुम्हारी आँख के कोने पे रुके उस
आंसू में लिखी कविता
शायद वो कहे, जो बयां करने में
कलम की सियाही सूख जाती है

लफ़्ज़ों को इस कदर
बेमायने कर दिया निगाहों ने
की ज़ुबाँ  कुछ बोले तो
बातों की लहर  टूट जाती  है

यूँ ही बातों के सिलसिले चले
कि बना के उनकी डोर
एक दूजे को थाम लें
डोर जो बार बार हाथों से छूट जाती है

चल पड़ेंगे फिर क़दमों की ताल को
दिल की धड़कन से मिलाये हुए
कि बिन तुम्हारे मेरी राहों से
मंज़िल रूठ जाती है.……