Saturday, December 5, 2015

दरख़्त

झांकते हैं दरख़्त
रोज़ खिड़की से मेरी,
चलो कोई तो है हमदम मेरा
वरना किसकी ज़िन्दगी में शामिल कौन है

लिबास डाल कर निकलते हैं
इज़्ज़तदार जो ठहरे
एहसासों की नुमाइश करे
जमाने में ऐसा ज़ाहिल कौन है

रोते हुए दुबके रहें
हर दिल के कोने में
मिल जाते हैं सबको ये
पर इन  ग़मों को हासिल कौन है

रात भटकती रही रात भर
लहरों की थपकियों से जागने को
ज़िन्दगी की कश्तियाँ तैरती डूबती रहीं
ना जाने इस समंदर का साहिल कौन है

झांकते हैं दरख़्त
रोज़ खिड़की से मेरी,
चलो कोई तो है हमदम मेरा
वरना किसकी ज़िन्दगी में शामिल कौन है 

Thursday, April 2, 2015

संतोष

ये जो प्यार है
जो ये प्रेम व्यवहार  है
निकटता ये, घनिष्ठता ये
सहर्ष स्वीकार है

पर ये जो दूरी है
जो ये मज़बूरी है
स्वर्णिम भविष्य की कोशिश में
ये भी बहुत ज़रूरी है

युवा मन, ह्रदय में जोश भी है
एकांत से व्यथित आगोश भी  है
पर सानिध्य ही सरोकार तो नहीं
विरह में पास होने का संतोष भी है


Saturday, March 21, 2015

कह देते जीवन काली रात है

कह देते जीवन काली रात है
मैं वो ही मान लेता
जीवन खुशियों की बरसात जो कहते
तो ऐसा ही जान लेता


पल-पल सुख दुःख का साथ में चलना
साथी मुझको समझ ना आया
श्वेत-श्याम का यूँ घुलना मिलना
जाने क्यूँ कुछ रास ना आया
कोई एक रंग जो कहते
तो उससे ही पहचान लेता
कह देते जीवन काली रात है
मैं वो ही मान लेता

दूर रहकर कोई पास रहे क्यूँ
दरिया में रहकर प्यास रहे क्यूँ
शब्दों को राग बनाकर गा देते तो
उनको ही आलाप लेता
कह देते जीवन काली रात है
मैं वो ही मान लेता

बंधू रहे, जो मित्र हैं मेरे
कुटिल चाल भी चल सकते हैं
निज बनकर शत्रु मेरे
निर्मल ह्रदय छल सकते हैं
खुलकर रिपु जो ललकार देते
तो उनको संहार देता
कह देते जीवन काली रात है
मैं वो ही मान लेता 

Tuesday, March 17, 2015

गौर

ये रोज़-रोज़ लगी किच-किच
आपा-धापी और भाग-दौड़
इससे बेहतर उससे बुरा
आगे-पीछे की ये होड़,
इन सब में कभी गौर ही नहीं किया
क्या वास्तव में जिया, जो मैं जिया ?


Saturday, February 21, 2015

सपने, उम्मीदें, अभिलाषाएं और आशाएं

सपने, उम्मीदें, अभिलाषाएं और आशाएं
खुद को आहत करने के ही तो तरीके हैं
स्वयं के स्तर को हज़ारो से नीचे दिखाना
वो स्तर, जिसपे करोड़ो खुश रहते हैं

आज की खुशियों मानो बैंक की तिज़ोरी में बंद करके
भविष्य में  सूद समेत आनंद मनाएंगे
साँसे भी मानो किस्तों में बटी है
बस असंतोष का विष घूँट- घूँट पीते हैं

फिर कहता हूँ
सपने उम्मीदें अभिलाषाएं और आशाएं
खुद को आहत करने के ही तरीके हैं

अनगिनत सपने
अभिलाषाएं अनंत
बेहिसाब उम्मीदें और आशाएं
और इन सब के बोझ तले
मात्र 'एक'  सीमित जीवन

आज के इक- इक लम्हे के कन्धों पर
कल के सारे सपनों का बोझ टिका है
अभिलाषाओं के इस बाज़ार में
मुफ़्त में मेरा वर्तमान बिका है।