Saturday, March 21, 2015

कह देते जीवन काली रात है

कह देते जीवन काली रात है
मैं वो ही मान लेता
जीवन खुशियों की बरसात जो कहते
तो ऐसा ही जान लेता


पल-पल सुख दुःख का साथ में चलना
साथी मुझको समझ ना आया
श्वेत-श्याम का यूँ घुलना मिलना
जाने क्यूँ कुछ रास ना आया
कोई एक रंग जो कहते
तो उससे ही पहचान लेता
कह देते जीवन काली रात है
मैं वो ही मान लेता

दूर रहकर कोई पास रहे क्यूँ
दरिया में रहकर प्यास रहे क्यूँ
शब्दों को राग बनाकर गा देते तो
उनको ही आलाप लेता
कह देते जीवन काली रात है
मैं वो ही मान लेता

बंधू रहे, जो मित्र हैं मेरे
कुटिल चाल भी चल सकते हैं
निज बनकर शत्रु मेरे
निर्मल ह्रदय छल सकते हैं
खुलकर रिपु जो ललकार देते
तो उनको संहार देता
कह देते जीवन काली रात है
मैं वो ही मान लेता 

Tuesday, March 17, 2015

गौर

ये रोज़-रोज़ लगी किच-किच
आपा-धापी और भाग-दौड़
इससे बेहतर उससे बुरा
आगे-पीछे की ये होड़,
इन सब में कभी गौर ही नहीं किया
क्या वास्तव में जिया, जो मैं जिया ?