Tuesday, September 27, 2016

मेरे नाम

रहो जो बेक़रार मेरे बिन
मुझे दिल का करार लिखना

रहे राहों पे निगाहें जब तलक
आँखों का इंतज़ार लिखना

भूल जाओ जो काम काज मेरी याद में
दिल-ओ-दिमाग का इतवार लिखना

बेनींद गुजरी हैं जो राते ख्वाबो में
निगाहों का वही मौसम दुश्वार लिखना

मिलूंगा न जब इस ज़माने में
अपने दिल पे जाना मेरा इश्तेहार लिखना



Wednesday, September 21, 2016

जमाने भर की सलाह
को स्वीकार करना
मगर बदस्तूर वही
व्यवहार रखना

हर किसी को कुछ न कुछ
कमी दिखती है मुझमे
बड़ा मुश्किल है खुद में
खुद को बरकरार रखना 
दरिया का दरिया
एक घूँट में पी गए
जो ज़िन्दगी एक कहानी
समझ के जी गए

एक लंबा सा
रास्ता ही तो है
काफ़िर भी गए
रामनामी भी गए 

प्रश्न

कहा तुमने
जो सत्य है
उसका पालन करो

जो धर्म है
उसको धारण करो

जीवा सत्कर्मों पर
अर्पण करो

परंतु सब कुछ
जीवन /मृत्यु
धर्म /अधर्म
सत्य/असत्य
जैसा स्पष्ट तो नहीं

अक्सर मोड़ ऐसे आते हैं
जो दिशाओं के बीच से जाते हैं

वहां क्या परिभाषा हो
इन मूल्यों की ??

अँधेरा उजाला घुल जाए अगर
किस रंग रंगे ये मन ??

मैं

मेरी शख्सियत मेरा वज़ूद
सब बेमानी है
तुमने जैसा देखा मुझे
समझा मुझे, जाना मुझे
मेरे होने का सबूत बस वही कहानी है

मैं क्या सोंचता हूँ, के मैं क्या हूँ
कुछ असर नहीं रखता,
मैं जैसा रहा, जो मैंने किया
तुम्हारी आँखों में
तस्वीर वही रह जानी है

हर कोई जानता है मुझको
अलग तरह से
जैसे हज़ार इंसान हों एक मुझमे
एक पत्थर की लहरे हों जैसे कई सारी
मगर दर असल तो सब पानी है

मेरी शख्सियत मेरा वज़ूद
सब बेमानी है

दो लोग

दो लोग एक हो भी जाएँ बेशक
फिर भी दो रहना ज़रूरी है
जो नज़दीकियों की हद है
वो ये दूरी है

चिराग अलग अलग हो सबके
बस घर में रौशनी एक रहे
आँधियों का क्या भरोसा
दिया एक ही हो ऐसी भी क्या मज़बूरी  है