Thursday, October 27, 2016

वज़ूद

कोई रंग नहीं है मेरा
न ही कोई रंग होता है किसी का,
कोई आकार नहीं है मेरा
ना ही कोई पहचान होती है किसी की ,
कोई पता भी  नही है मेरा
ना ही ठिकाना होता है किसी का,

ये रंग, ये रूप,
ये आकार, ये पहचान,
ये पते, ये ठिकाने,
ये अच्छा, ये बुरा,
सब के सब वहम
तुम्हारी आँखों में हैं।

और मैं ?
मैं तो बस पानी हूँ...
बिलकुल तुम्हारी तरह।

जब तक की आँखों ने
एक ख़ास रंग घोल
वज़ूद ना बना दिया।

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