Monday, October 10, 2016

गुज़रा वक़्त

मुड़ के देखो तो लगता है
सब ठीक ठाक था 
ऐसा नही है की मुकम्मल था 
पर सब ठीक ठाक था 

संघर्षों के निशान यादों से 
धीरे धीरे मिट जाते हैं 
उजालों में ये साये भला फिर 
कहाँ टिक पाते हैं 

ज़िन्दगी के वो तीखे कोने 
वक़्त के साथ घिस से जाते हैं 
और फिर मुड़ के देखो तो लगता है 
सब ठीक ठाक था 
मानो सब कितना आसान था 

यही कहानी आज है 
यही कहानी कल होगी 
जो आज कठिन लग रही है 
कल वो ज़िन्दगी नहीं मुश्किल होगी।

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